त्वचा पर उत्पन्न किसी भी प्रकार के रोग शरीर के अन्दर मौजूद रोग को बताता है। अत: त्वचा के रोगों में केवल बाहरी दवाईयों का प्रयोग करके त्वचा को स्वस्थ नहीं बनाया जा सकता है बल्कि त्वचा को स्वस्थ बनाने के लिए आंतरिक दवाईयों का प्रयोग करना लाभदायक होता है। इसका कारण यह है कि जब शरीर के अन्दर का कोई अंग रोगग्रस्त हो जाता है तो उस अंगों की प्रतिक्रिया त्वचा के द्वारा होती है और जब रोग को दूर करने के लिए आंतरिक औषधियों का प्रयोग किया जाता है तो अन्दर का रोगग्रस्त अंग ठीक हो जाता है जिससे त्वचा अपने आप स्वस्थ हो जाती है। लेकिन त्वचा की कुछ ऐसे भी रोग हैं जिनका सम्बंध अन्दर के अंगों से नहीं होता बल्कि त्वचा से ही होता है जिसके लिए लगाने वाले औषधियों का प्रयोग करने से रोग ठीक हो जाता है। त्वचा पर बाहरी प्रयोग में आने वाली औषधियां हैं जिंक-आयण्टमेण्ट, कैलेण्डुला सिरेट, सल्फर, गुलार्डज-साल्यूशन या वैसलीन आदि। इन औषधियों के प्रयोग से त्वचा के ऊपरी भाग के रोग ठीक हो जाते हैं लेकिन त्वचा के अन्दुरूनी भाग तक फैलने वाले रोग ठीक नहीं हो पाते हैं। त्वचा पर उत्पन्न होने वाले रोग है कुछ इस प्रकार हैं- फंगल का संक्रमण, जूएं, एक्जिमा, सोरायसिस, रूसी, जीवाणुओं का संक्रमण, छोटी-माता, खसरा, स्केबीज या हर्पिस आदि।
त्वचा रोग के कारण :- त्वचा पर उत्पन्न रोगों के कई कारण हैं जैसे- गन्दे व मैले कपड़े का प्रयोग करना, गन्दी जगहों पर रहना, रसायन चीजों का प्रयोग करना, मेकप अधिक करना, रंगों का प्रयोग करना, परफ्यूम लगना, साबुन व डिटरजेन्ट का इस्तेमाल करना, एलर्जी वाले चीजों के सम्पर्क में आना और खुजली होना आदि। त्वचा के रोग मछली एवं बैंगन खाने से भी हो जाता है।
विभिन्न औषधियों से उपचार:
1. आर्सेनिक- पेट, आतों एवं किडनी के रोगों में त्वचा का रोग होने पर इस औषधि की निम्न शक्ति का प्रयोग किया जाता है एवं दर्द एवं मानसिक रोगी को त्वचा रोग होने पर इस औषधि की उच्च शक्ति का प्रयोग किया जाता है। यदि रोग केवल त्वचा के ऊपरी भाग पर हो तो 2x या 3x मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है। इस औषधि का प्रयोग त्वचा के ऊन सभी रोग में लाभकारी है जिसमें त्वचा मोटी हो जाती है जैसे- सोरियासिस, पुराने एक्जिमा, पुराने पित्ती का रोग आदि। त्वचा पर खुजली होने पर भी इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।
त्वचा पर दाने होना, जख्म होना, बदबूदार स्राव होना, पुराने एक्जिमा, खुजली व जलन आदि त्वचा के रोग में आर्सेनिक औषधि की 3, 30 या 200 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। मछली खाने से त्वचा पर खुजली व जलन वाले दाने उभर आए हो या दाने पूर्ण रूप से निकले बिना ही बैठ गया हों जिससे रोगी को कष्ट होता हो तो इस औषधि का प्रयोग अत्यंत ही हितकारी होता है। त्वचा पर उत्पन्न पीब वाले दाले जिस पर खुरण्ड बन जाए। बेकार, ग्रोसर एवं हाथ के पिछले भाग पर खुजली होने पर आर्सेनिक औषधि के स्थान पर बोविल्टा औषधि का उपयोग किया जा सकता है। त्वचा पर से पपड़ी झड़ने एवं दाद होने पर सीपिया औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। अगर त्वचा में सूजन होने के साथ वह लाल हो जाए और उस पर छाले पड़ जाए तो रस टॉक्स औषधि का प्रयोग करना लाभप्रद होता है। यदि त्वचा में दुखन (रवनेस्स) हो और धोने या पानी लगने से दर्द बढ़ जाए तो क्लेमेटिस औषधि का प्रयोग करें। रिसने वाले दाने होने पर भी क्लेमेटिस औषधि का प्रयोग किया जाता है।
2. ग्रैफाइटिस- त्वचा पर होने वाले अनेक प्रकार के रोगों के लिए यह औषधि अत्यंत लाभकारी है। त्वचा पर उत्पन्न विभिन्न लक्षणों जैसे- सिर, चेहरे व जोड़ों के बीच एवं कान के पीछे पतले स्राव वाले या छिलकेदार दाने होना। मुख व आंखों के कोने फट जाना और उससे खून निकलना, गोंद की तरह स्राव होना या शहद की तरह स्राव होना, गाढ़ा, तारदार, चिपटने वाला स्राव होना। त्वचा पर उत्पन्न एक्जिमा रोग जिसमें दरारें पड़ जाती हैं और खुजली होती है। त्वचा खुश्क एवं कड़ी हो जाती है। बाल भी कड़े होते हैं एवं झड़ते हैं। इस तरह त्वचा पर उत्पन्न लक्षणों में ग्रैफाइटिस औषधि की 6 या 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। यदि त्वचा पर सूखी व पपड़ी बनने वाले दाने हो तो लाइकोपोडियम का प्रयोग किया जाता है। खोपड़ी पर होने वाले ऐसे एक्जिमा जो धीरे-धीरे चेहरे तक फैल जाता है, सुबह के समय उस पर खुजली होती है और त्वचा की पपड़ी सफेद होती है। ऐसे एक्जिमा को दूर करने के लिए कैलकेरिया कार्ब का प्रयोग किया जाता है।
3. सल्फर:-त्वचा पर उत्पन्न होने वाली कितनी भी तेज खुजली हो तो उसे दूर करने के लिए सल्फर औषधि का उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त त्वचा के अन्य रोग जैसे- बालों की जड़ों में दाने या फुन्सियां होना जिस पर खुरण्ड जम जाता है। सिर पर खुश्की, गर्मी व तेज खुजली होती है जो रात को बढ़ जाती है, खुजलाने खुजली में खुजलाने से त्वचा तेज जलन होती है एवं नहाने से कष्ट बढ़ जाता है। ऐसे लक्षणों में भी सल्फर औषधि का प्रयोग किया जाता है।
त्वचा के अन्दर की खुजली एवं गिट्टे के जोड़ों की खुजली में सेलेनियम औषधि देना हितकारी होता है। एक्जिमा के दाने यदि किसी बाल वाले अंग पर हुआ हो तो वहां के बाल झड़ने लगते हैं। ऐसे एक्जिमा को ठीक करने के लिए भी सेलेनियम औषधि का ही प्रयोग करना बेहतर होता है।
4. ऐन्टिम क्रूड
त्वचा पर मोटे मोटे दाने हो गए हो, नाखून न बढ़ते हों, बच्चों के सिर पर शहद के रंग का खुरण्ड पड़ गया हो, नाक के नकुरे एवं मुख के कोने फट गए हों तो ऐसे लक्षणों में ऐन्टिम क्रूड औषधि की 3 या 6 शक्ति का प्रयोग करना हितकारी होता है।
यदि कोई रोगी चेचक रोग से पीड़ित हो और चेचक समाप्त होने के बाद उसके दानों के दाग पड़ गए हों तो उसे ऐन्टिम टार्ट औषधि का सेवन कराना चाहिए। अण्डकोष की थैली की सूजन और उसमें पीब बनने के लक्षणों में भी इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।
5. थूजा:-मस्सों होने या एक्जिमा हो जाने पर इस औषधि के प्रयोग से रोग ठीक होता है। चेहरे पर दाने होने पर थूजा औषधि की 30 या 200 शक्ति का सेवन करने से लाभ होता है।
टीक लगवाने के बाद अगर त्वचा पर किसी प्रकार के दाने या अन्य रोग दिखाई दें तो थूजा औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करने से लाभ होता है।
6. बैसिलिनम- यक्ष्मा (टी.बी.) या गण्डमाला रोग से ग्रस्त रोगी को त्वचा रोग हो गया हो तो बैसिलिनम औषधि की 200 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।
7. बेलिस पेरोनिस- नम हवा लगने या अचानक मौसम परिवर्तन होने के कारण यदि त्वचा का कोई रोग हो गया हो तो बेलिस पेरोनिस औषधि का प्रयोग करें।
8. नैट्रम म्यूर- नाखून का वह भाग जो मांस से जुड़ा होता है यदि उस स्थान पर सूजन आ जाए तो रोगी को नैट्रम म्यूर औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। जोड़ों के मोड़ों में पानी वाले छाले होने, होंठों पर पनीला छाले होना, बुखार में पनीले छाले होना आदि रोग में इस
है।
औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है। बिना खुजली वाले तर एक्जिमा होने या ऐसे एक्जिमा जिसमें खुरण्ड पड़ जाते हैं और उसके नीचे से गाढ़ा पीब का स्राव होता रहता है। पित्ती उछलना व खुजली आदि। इन सभी त्वचा के रोगों में नैट्रम म्यूर औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
9. क्रियोसोट- जोड़ों के पास कि वह पेशियां जो जोड़ को फैलाने में मदद करती है उस पर दाने होने पर क्रियोसोट औषधि की 3, 30 या 200 शक्ति का सेवन करना लाभकारी होता है।
10. बरबरिस- चेहरे पर दाने या फुन्सियां आदि को दूर करने के लिए बरबरिस औषधि का प्रयोग किया जाता है। इस रोग में इस औषधि के मूलार्क को 40 से 50 बूंद की मात्रा में प्रयोग करने से चेहरा साफ व सुन्दर होता है।
11. आर्निका- चोट लगने या गिर जाने के बाद त्वचा का कोई रोग होने पर आर्निका औषधि की 3 या 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
12. हाइड्रोकोटाइल- त्वचा अत्यंत सूखी होती है जिसके कारण त्वचा से पपड़ियां उतरती रहती है। ऐसे त्वचा रोग में हाइड्रोकोटाइल औषधि की 1 या 6 शक्ति का सेवन करना लाभकारी होता है। कुष्ठ रोग होने एवं सोरियासिस रोग में भी इस औषधि का प्रयोग लाभदायक होता है लेकिन सोरियासिस रोग में बोरैक्स औषधि का भी प्रयोग करना अत्यंत उपयोगी होता है।
13. पेट्रोलियम- यदि एक्जिमा वाले भाग पर मोटा खुरण्ड जम गया हो और उसके नीचे से पीब का स्राव होता हो, त्वचा फट गई हो, त्वचा कठोर व सूख गई हो, अंगुलियों के अगले भाग एवं हाथों की त्वचा फट गई हो या कानों के पीछे एक्जिमा हो गया हो तो इन सभी त्वचा रोगों में पेट्रोलियम औषधि की 12x, 3, 30 या 200 शक्ति का प्रयोग करना उपयोगी होता है।
14. मेजेरियम:-यदि सिर पर वसा ग्रंथियों के स्राव के कारण सफेद पपड़ियां जम गई हो तो मेजेरियम औषधि का प्रयोग करने से लाभ होता है। सिर पर तेज खुजली होती हो जो टोपी पहनने व गर्मी से और बढ़ जाती है। त्वचा पर होने वाले छाले या दाने जिससे स्राव होने पर वह जमकर पपड़ी बन जाती है और फिर उसके नीचे से लगने वाली पीब निकलती रहती है। नर्व के रास्ते पर स्नायविक दर्द होता है जैसे हरपिज रोग होता है। फफून्दी लगने से खोपड़ी पर या कानों के पीछे खुजली होती है जो रात को बढ़ जाती है जिससे रोगी को ठीक से नींद नहीं आती। इस तरह त्वचा पर उत्पन्न होने वाले सभी रोगों के लिए मेजेरियम औषधि की 6 या 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
एक्जिमा आदि त्वचा का रोग जो मौसम परिवर्तन के कारण व सर्दी के मौसम में उत्पन्न होता है और गर्मियों के मौसम में समाप्त हो जाता है। ऐसे लक्षणों में मेजेरियम औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।